Tuesday, July 16, 2019

why ego is biggest enemy

हम सभी के अंदर जो सबसे कॉमन फीलिंग वह है ईगो।  सबके अंदर पाई जाती है किसी में कम किसी में ज्यादा।  हम सभी इंसान चाहते है हमारी एक पहचान हो समाज में हमारा मान हो।  इसी भावना के चलते हम खुद को कुछ बनाने के लिए रास्ते बनाने लगते है ताकि समाज में हमें ज्यादा मान सम्मान और पहचान मिल सके, और इसी भावना के चलते हमारे अंदर ईगो का जन्म हो जाता है ईगो शब्द का मतलब है सेल्फ इमेज।  हम अपनी सेल्फ इमेज के बारे में जैसा सोचते है हम चाहते है सामने वाला भी वैसा ही सोचे।  और जब कोई इंसान हमारी सेल्फ इमेज के खिलाफ कुछ बुरा बोलता है तो इससे हमारे सेल्फ इमेज यानि आत्म सम्मान को एक ठेस पहुँचती है और खुद की सेल्फ इमेज की सुरक्षा  हेतु हम अपने ईगो को विकसित कर लेते है जिससे की कोई भी हमारे सेल्फ इमेज या आत्म सम्मान को ठेस न पंहुचा सके। इसी ईगो के चलते हम अपना नेचर रक्षात्मक बना लेते है जब सामने वाला हमें गलत साबित करता है तो हम खुद को हर हाल में सही साबित करके रहते है और सामने वाले को गलत फिर चाहे उसके लिए बहस करना पड़े लड़ना पड़े रिश्ते तोडना पड़े। चूँकि ईगो का जन्म हमारे आत्म छवि की रक्षा करने हेतु होता है लेकिन इसका दूसरे पे बुरा प्रभाव पड़ता है क्युकी जो ईगो हमारे अंदर है वही ईगो सामने वाले के अंदर भी है।  जब हम खुद को सही साबित करके दूसरे को गलत साबित करना चाहते है तो सामने वाला इंसान भी यही चाहता है वो भी खुद को सही साबित करना चाहता है क्युकी उसके अंदर भी आप जैसे ईगो और आत्म छवि है।  यही वजह है की लोग खुद को साबित करने के लिए दोस्तों / रिस्तेदारो से लड़ाई तक कर लेते है।  जब हमें ऐसा लगता है की हमें गलत साबित कर दिया गया है तो हम इस बात को मन में बिठाकर सामने वाले से बदला लेने के फिराक में रहते है ताकि उसको गलत साबित कर सके या उसको सजा दे सके ताकि हमारा ईगो संतुष्ट हो सके।  चूँकि सामने वाले में भी यही फीलिंग रहती है इसलिए जब आप उसको गलत साबित कर देते है तो वो भी आपसे बदला लेने के लिए सही समय का इंतज़ार करता है। अगर एक कर्मचारी ने अपने बॉस से किसी बात पे बहस की और कर्मचारी ने खुद को सही साबित कर लिया तो उसका बॉस इस बात को याद रखेगा और खुद के ईगो को बचाने के लिए बदले की भावना को अपने अंदर भर लेगा। किसी दिन जब उस कर्मचारी को विशेष रूप से छुट्टी या किसी काम की जरुरत पड़ेगी तो बॉस के लिए यही सही समय रहेगा बदला लेने के लिए और ये बताने के लिए के उस दिन तुमने मुझसे बहस करके गलती की थी।  कर्मचारी और बॉस के बीच ये सिलसिला चलता रहेगा जिसका कोई अंत नहीं है।  ये सिलसिला दो दोस्तों के बीच या पति पत्नी के बीच या घरेलु मामलो में या रिस्तेदारो में देखा जा सकता है। ईगो होने का सबसे बड़ा दुष्परिणाम ये है की  हमें गलत साबित नहीं होने देता।  इंसान जितना आगे बढ़ता जाता है उतना सीखता जाता है अपनी गलतियों से और अगर वो खुद की गलती स्वीकार नहीं करेगा उसका बढ़ना वही पे रुक जायगा। ज्यादातर लोग अपनी गलती का दोष किस्मत, समाज, वस्तु, दोस्त, पार्टनर पे डाल देते है ऐसा करने के पीछे उनका ईगो होता है जो खुद को गलत साबित नहीं होने देता है ऐसा करने से वो खुद की गलती से सीख न लेने के कारण आगे भी वही गलती दोहराते है।  ईगो के प्रति आपको सेल्फ कॉन्सियस होना पड़ेगा आपको पता करना पड़ेगा की कब आप गलत है और कब सही। अगर आप गलत है तो आपको गलती स्वीकार करके उससे सीख लेकर आगे वो गलती नहीं दोहरानी चाहिए। और अगर रिस्तो में आप सही है और सामने वाला गलत तब भी आपको उसको गलत साबित न करके उसको समझाना चाहिए जो भी ग़लतफहमी हो उसको लेकर। क्युकी इंसान के अंदर विनम्रता अपने ईगो को कम करके ही आती है , इंसान जितना महान होता जाता है उसकी विनम्रता उतनी बढ़ती जाती है।  महान लोगो का ईगो भी उनको ले डूबता है और आम आदमी की विनम्रता उसको महान बना देती है।

Thursday, July 4, 2019

4 easy way to make good habbit and remove bad habbit

अच्छी आदते और बुरी आदते हम सब में पायी जाती है , किसी में अच्छी आदते ज्यादा पाई जाती है किसी में बुरी आदते ज्यादा , जिस तरह की आदते होंगी उस तरह का इंसानी नेचर उस व्यक्ति का बन जाता है , जो उसके जीवन में आगे उसके लिए सफलता या बर्बादी का कारण बन जाती है | बुरी आदते अपने आप बन जाती है जबकि अच्छी आदत डलने में समय और कठिनाई लगता है , लोग आसान चीज़ो को जल्दी अपनाते है | यही वजह है की उनको डेली सुबह मॉर्निंग वाक जाने की आदत डालने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है | क्युकी अच्छी आदते देर से और समय के साथ बनती है | हर किसी को किताब पढ़ना अच्छा नहीं लगता है, सुबह जल्दी उठना अच्छा नहीं लगता है, व्यायाम से कतराते है | क्युकी ये सब अच्छी आदते हे इसलिए इनको अपनाने में समय और कठिनाई का सामना करना पड़ेगा लेकिन एक बार आदत डल जाने पर आपको आसान लगने लगेगा | आदते outcome based और identity based रहती है जैसे एक इंसान का कहना है की मै अब सिगरेट नहीं पियूँगा मैं सिगरेट छोड़ने की कोशीश कर रहा हु दूसरी तरफ एक इंसान का कहना है मैं सिगरेट नहीं पीता हु मैं  स्मोकर नहीं हु | दूसरे तरह की identity based ज्यादा प्रभावकारी रहती है | 
 अगर बुरी आदतों से छुटकारा पाना है तो आपको पुरानी पहचान छोड़ के नयी पहचान बनानी पड़ेगी , बार बार एक ही काम करने से हमारी एक पहचान बन जाती है जिससे हम लगाव करने लगते है और उसको छोड़ पाना मुश्किल हो जाने से हम बुरी आदत से छुटकारा पाने में दिक्कत आती है |  नयी पहचान बनाने के लीये आपको एक ही काम बार बार रिपीट करना पड़ेगा अगर आपको अच्छा स्पीकर बनना है तो डेली कुछ लोगो से बात करने की आदत आपको डालनी पड़ेगी हर दिन 1 प्रतिशत भी आप करेंगे तो कुछ समय बाद आपकी पहचान बदलने से आपकी नयी आदत बन जायगी जो आइडेंटिटी बेस्ड रहेगी | किसी भी आदत को बनने में 4 कारक मौजूद रहते है जिनमे से पहला है ट्रिगर दूसरा है इच्छा  तीसरा है एक्शन चौथा है फीलिंग | उदाहरण के लिए मोबाइल पर sms आने पर आपका दिमाग ट्रिगर करता है मोबाइल देखने के लिए , दूसरा है की आपकी इच्छा होती है जानने की किसका मेसेज होगा , तीसरा आप उस चीज़ को देखने के लिए एक्शन लेते है यानि मोबाइल उठाते है , चौथा है आपको मेसेज देखने के बाद एक फीलिंग आती है अच्छी या सम्पूर्णता की | इसी तरह से हमारी ये आदत बार बार रिपीट करने से बन जाती है , इन चार कारको में सब में किसी एक कारक को हटा दिया जाए तो वो आदत नहीं बनेगा उदहारण के लिए ट्रिगर अगर नहीं होगा तो आदत शुरू ही नहीं होगी, इच्छा कमज़ोर होगी तो आपको वो काम करने का मन ही नहीं करेगा , एक्शन को मुश्किल बना दो तो वो काम कठिन होने से काम पूरा नहीं होगा, फीलिंग अगर एन्जॉय नहीं दे पाई तब भी वो आदत नहीं बन पाएगी | इन चार कारको से ही कोई भी अच्छी आदत बनती है और इन चार कारको का ही इस्तेमाल घटा के कोई भी आदत तोड़ी जा सकती है | अगर आपको बुरी आदत जैसे मोबाइल के बार बार इस्तेमाल से छुटकारा पाना है तो ट्रिगर को गायब कर दो यानि मोबाइल अपनी आँखों के सामने से हटा कर दूर लाकर में रख दो , दूसरा इच्छा को कमज़ोर बना दो जैसे की आप सोचते है आज तक व्हाट्सअप इंस्टाग्राम चलाने से क्या मिला कभी कुछ अच्छा नहीं मिलता है, तीसरा एक्शन को कठिन बनाने के लिए मोबाइल पासवर्ड कठिन बना दो जिसको आपको टाइप करने में समय और कठिनाई लगे, चौथा फीलिंग को आप  हटाने के लिए आप उसमे से इंस्टाग्राम व्हाट्सप्प डिलीट कर सकते है जिससे आपका बार बार मन नहीं करेगा फोन देखने का | और इस तरह आप मोबाइल देखने की बार बार बुरी आदत से छुटकारा मिल जायगा | ठीक ये ही चार कारक का इस्तेमाल करके आप अच्छी आदत बना सकते है उदाहरण के लिए आपको किताब पढ़ने की आदत डालनी है तो आप ट्रिगर को आसान कर दो यानि किताब अपनी आँखों के सामने रख दो जिससे आपको वो किताब बार बार दिखती रहे, दूसरा इच्छा को आसान बनाओ उसमे बुकमार्क या पेज मोड़ कर रख सकते जिससे आपने जंहा ख़तम की वही से शुरू कर सके , तीसरा एक्शन को सरल बनाओ ताकि आपको किताब उठाने रखने में दिक्कत महसूस न हो और आसानी से आप किताब तक पहुँच सके , चौथा फीलिंग को satisfy बनाये जिससे आपको सम्पूर्णता का अहसास हो और आप वो काम दुबारा करने के लिए प्रेरित हो | इस तरह बार बार किये जाने से हमारे अंदर वो आदत बनने लगती है | हम वो आदतों को अपनाते है जिनको हम आस पास जैसे दोस्त रिस्तेदार समाज में या बहुत लोगो को या पावरफुल लोगो को करते देखते है | आपको आदत शुरू करने या ख़तम करने के लिए मोटिवेशनल की जरुरत नहीं पड़ती है वातावरण की ज्यादा जरुरत पड़ती है | कुछ लोगो अपने कमरे में रोज टीवी देखते है और टीवी देखने की आदत से छुटकारा नहीं पाते है जबकि कुछ लोग अपने कमरे से टीवी ही हटा देते है | क्युकी मोटिवेशन से ज्यादा वातावरण ज्यादा असर करता है | मोटिवेशन के बजाय आप आदत को वातावरण से जल्दी बना सकते है, बीमा कंपनी के एक एम्प्लोयी ने अपने डिब्बे में 120 पिन रखी हुई थी दूसरे डिब्बे को खाली रखा हुआ था , वो हर बार एक क्लाइंट को फोन करने करने बाद एक पिन डब्बे से निकाल के दूसरे खाली डिब्बे में डाल देता था और वो यह काम तब तक करता जब तक डिब्बे की सारी पिन दूसरे खाली डिब्बे से न भर जाए | और उसने इस चीज़ को अपने आदत में शुमार करके जल्द ही 10  साल के अंदर मिलिनायर की श्रेणी में पहुंच गया | हमेशा अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने की कोशिस करे और हर दिन 1 प्रतिशत इम्प्रूव करे जल्द ही आप 100 प्रतिशत इम्प्रूव करके खुद को बदल देंगे | कठिन काम को एक दिन में करने की कोशिस न करे उसको हर दिन थोड़ा  करने की आदत डाले | हर दिन एक ही काम करना बोरियत भरा हो सकता है लेकिन बहुत पावरफुल लोग इसी तकनीक का इस्तेमाल करके पावरफुल बने है | आप भी अपनी आदतों को बना कर धीरे धीरे हर दिन थोड़ा इम्प्रूव करके जल्द ही मन चाहे मुकाम तक पहुँच सकते है |

bonding 123 formula

क्या आपने गौर किया है किसी की दोस्ती या रिश्ता बहुत मजबूत होता है , और लगता है जैसे जन्मो का साथ है कभी नहीं छोड़ेंगे एक दुसरे के साथ  रिश्ता या दोस्ती सालो साल चलती है बिना टूटे | मेरे मन में भी इस तरह के सवाल उठ ते थे जिनको जानने की मेरी इच्छा रहती थी कि ऐसा क्यों और अगर ऐसा है तो इसका इस्तेमाल हर एक बीच कैसे किया जाये ताकि उनके भी रिश्ते और दोस्ती मजबूत हो | आप जब  दो लोगो के बीच उनकी दोस्ती या रिश्ते को अवलोकन करेंगे या जानने की कोशिस करेंगे तो आप पाएंगे की वो दोनों लोग उनके बीच जितनी बाते होती है उसमे वो किसी अन्य व्यक्ति, चीज़, जगह, घटना, टॉपिक या हैबिट पे ज्यादा बाते करते मिलेंगे , वो लोग आपस में एक दूसरे के बारे में काम किसी अन्य को लेकर ज्यादा बाते करेंगे जो की उन दोनों के बीच की रूचि को दिखता है | अगर दो लोग आपस में किसी तीरसे व्यक्ति को लेकर चुगली कर रहे है तो उन दोनों लोगो की रूचि उस तीसरे व्यक्ति में है इसलिए वो तीसरे व्यक्ति को लेकर आपस में ज्यादा बाते कर रहे है और इस तरह वो देर तक बाते कर सकते है , जैसे के हमारे समाज में औरते करती है इसलिए उनके बीच इतनी अच्छी बॉन्डिंग पायी जाती है, दो दोस्त जिनको एक ही विषय में पढ़ना उसपे बात करना अच्छा लगता है तो उन दोनों की बॉन्डिंग अच्छी मिलेगी | पति पत्नी अगर उनके बीच कोई  चीज़ है जो उन दोनों के लिए रूचि का विषय है जिसपे वो घंटो बाते कर सकते है तो उन दोनों के बीच बॉन्डिंग अच्छी रहेगी अगर पति पत्नी दोनों को कुकिंग या डांस का शौक है तो उन दोनों के बीच बॉन्डिंग अच्छी रहेगी क्युकी उन दोनों के बीच तीसरी चीज़ मौजूद है जिसपे दोनों का इंटरेस्ट है बात करने का | यानि पहला व्यक्ति (1) दूसरा व्यक्ति (2) और तीसरी आपसी इंट्रेस्ट की कॉमन चीज़ (3) | और इसलिए  इसको मै बॉन्डिंग 123 फार्मूला कहता हु | रिस्ते में झगडे की सम्भावना तब ज्यादा बढ़ जाती है जब दो लोग आपस में एक दूसरे को लेकर ज्यादा बाते करते है ऐसे समय वो एक दूसरे की गलती खामिया ढूंढ़ते है जिससे झगडे बढ़ते है , लेकिन उनके बीच अगर दोनों के पसंद का कोई टॉपिक है जिसपे वो बाते कर सकते है तो उनके बीच बॉन्डिंग अच्छी बनेगी झगडे कम होंगे | एक ही चीज़ को पसंद करने वाले दो लोगो के बीच बॉन्डिंग इसलिए ही अच्छी हो जाती है ताकि उनके पास बाते करने के लिए तीसरा टॉपिक उपलब्ध  रहता है  जैसे दो क्रिकेट प्रेमी दोस्तों के बीच बॉन्डिंग | इसलिए मेरा जंहा तक मानना है दो लोगो के बीच अगर कोई तीसरा टॉपिक उपलब्ध नहीं है तो उन दोनों को आपस में कोई कॉमन चीज़ ढूंढ़नी चाहिए जैसे कोई हैबिट कोई विषय कोई रूचि कोई टीवी शो कोई मूवी जिसपे वो लम्बी  बाते कर सके हमेशा और एक दूसरे की गलती ढूंढ़ने का कम समय मिले | इससे एक खराब रिश्ता भी अच्छे रिश्ते में बदल जायगा | और इसका इस्तेमाल करके आप अनजान व्यक्ति से भी कम समय में अच्छे दोस्त बना सकते है | जिन विषय में दोनों की रूचि हो वो ज्यादा अच्छी बॉन्डिंग का काम करेगा अगर एक की रूचि है दुसरे  की नहीं तब भी समस्या बनी रहेगी | इसलिए अपना समय झगडे करने के बजाय अपने रिश्ते अच्छे करने में ज्यादा समय लगाए |

emotional based decision

हर इंसान में दिमाग के दो हिस्से पाए जाते है एक हिस्सा लॉजिक वाला दूसरा हिस्सा भावनाओ वाला , लॉजिक वाला हिस्सा concious mind और भावनाओ वाला हिस्सा subconcious mind कहलाता है, जिनका लॉजिक दिमाग ज्यादा मजबूत रहता है वो लोग गणित, फैक्ट्स, तथ्य, तर्क वितर्क, कैलकुलेशन तरह की चीज़ो में मजबूत रहते है ऐसे लोग वकील डॉक्टर साइंटिस्ट या कैलकुलेशन फील्ड में ज्यादा रूचि रखते है, दूसरे तरह के वो लोग होते है जो दिमाग की कल्पना शक्ति का इस्तेमाल ज्यादा करते है ऐसे लोग सिंगिंग , पेंटिंग, डांसिंग जैसे फील्ड में ज्यादा रूचि रखते है, हर इंसान लॉजिक और भावनाओ दोनों का इस्तेमाल करके निर्णय लेता है की उसे आगे क्या करना है लेकिन एक रिसर्च के मुताबिक 80 प्रतिशत से ज्यादा समय इंसान अपने भावनाओ से निर्णय लेता है , उसकी आदते उसके सोचने का तरीका उसका रहन सहन उसकी भावनाय उसके फैसले पे असर डालती है, इंसानी भावनाये कभी भी स्थिर नहीं रहती समय के साथ इंसानी भावनाये एक दिन में कई बार बदलती रहती है | अगर किसी ने सोचा है अगले दिन मै सुबह उठ कर डेली वॉक पे जाऊंगा तो उस वक़्त के लिए उसको लगेगा मेरा फैसला अटल रहेगा क्युकी उस वक़्त उसके दिमाग में भावनाये अलग है जो फैसले लेने में उसको प्रेरित करते है लेकिन अगली सुबह अगर आपको लगता है आपकी नींद पूरी नहीं हुई तो सबसे पहले आप यही सोचेंगे की आज से जल्दी सो जाऊंगा कल उठ कर डेली जाऊंगा , और ऐसा हर रोज होता है, चूँकि जब आप सुबह उठे आपकी भावनाये अलग थी इसलिए आपने उस वक़्त का फैसला लिआ | पिछले दिन भावनाये अलग थी इसलिए उस वक़्त अलग फैसला लिया। फैसला आप स्थिर कर सकते है लेकिन भावनाये नहीं|  चूँकि आपने फैसले भावनाओ से लिए थे इसलिए एक वक़्त पे आपको अपने फैसले पे अटल रहने में मुश्किल आएगी क्युकी आप अपनी भावनाये स्थिर नहीं कर सकते अनंत समय तक , यही वजह है की मोटिवेशनल वीडियो या किसी के द्वारा inspire किये जाने  पर  हम उस वक़्त के लिये ऊर्जा भर लेते है लेकिन कुछ समय बाद वो ऊर्जा गायब हो जाती है , और इस तरह एक के बाद एक मोटिवेशनल वीडियो हम देखते रहते है और सोचते है के ये वीडियो असर नहीं करती है | इंसानी दिमाग भावनाओ से ज्यादा असर करता है इसलिए टीवी एड्स मॉल सिनेमा इन सब में आपकी भावनाओ का इस्तेमाल करके आपको मजबूर किया जाता है वो प्रोडक्ट खरीदने पे और हमें लगता है प्रोडक्ट खरीदने का फैसला हमारे द्वारा लिया गया है | भावनाओ में लिए गए फैसले गलत हो सकते है लेकिन लॉजिक से लिए फैसले कम गलत होते है , अगर आपने लॉजिक से फैसला लिया है आप उस फैसले पे अटल रह सकते है | अगर आज आपने किसी से वर्तमान भावना को मद्देनज़र रख के कोई ऐसा फैसला लिया है जो आपको भविष्य में निभाना है तो आप भविष्य में वो समय आने पर अपनी बात से पलट जायँगे या उस वक़्त उस कमिटमेंट को बदल देंगे | तलाक की सबसे बड़ी वजह भी यही होती है , क्युकी उस वक़्त भावनाओ में फैसले लिए थे बाद में वो फैसले पे अटल नहीं रहने से रिश्ते में दरार आ जाती है, इसके अलावा हम मोटिवेशनल वीडियो देख कर या किसी के द्वारा inspire  करने पर हम सोचते है की हमको इतने घंटे पढ़ना है डेली पढूंगा पर अगले दिन सारी ऊर्जा गायब और वापस हम इंस्टाग्राम व्हाट्सप्प फेसबुक पे व्यस्त हो जाते है | इंसानी दिमाग वर्तमान की भावनाओ से भविष्य का निर्माण करने लगता है जो की पूरी तरह निराधार है , किसी रात आप दुखी होते है और सोचते है मेरी ज़िन्दगी अच्छी नहीं गुज़र रही पता नहीं क्या होगा | परिवार में कोई छोटा बच्चा पढ़ने में कमज़ोर है तो परिवार के लोग उसपे उस वक़्त के हालात के अनुसार उसको नालायक, कुछ नहीं कर सकता , कुछ नहीं होगा इसका, कुछ नहीं बन पाएगा, इन नामों का ठप्पा लगा देते है , क्युकी परिवार वाले भी वर्तमान स्थिति की भावनाओ से फैसले ले रहे है जो की गलत है | किसी की भी वर्तमान स्थिति या वर्तमान भावनाओ से हम उसके भविष्य तय नहीं कर सकते | किसी ने सच कहा है की इंसान को खुश होकर कोई वादा नहीं करना चाहिए और दुखी होकर कोई फैसला नहीं लेना चाहिए और ग़ुस्से में कोई एक्शन नहीं लेना चाहिए | क्युकी ये तीनो उस वक़्त के सिर्फ फीलिंग मात्र है जो अगले दिन ख़तम हो जाएँगी लेकिन फैसला आपके लिए पछतावे का कारण बन जायगा भविष्य के लिए |  चाहे रिश्ते हो , करियर हो , व्यापर हो , जॉब हो, आप जो भी फैसला ले उसमे उस वक़्त की temporary feeling न हो इस बात का ध्यान रख के फैसले ले | क्युकी भावनाये बदल सकती है फैसले नहीं |

Monday, July 1, 2019

belief system

बिलीफ़ सिस्टम या कहे तो इंसानी ऑपरेटिंग सिस्टम ठीक जैसे अलग अलग मोबाइल में अलग अलग ऑपरेटिंग सिस्टम जैसे एंड्राइड, आई ओ एस , विंडोज रहते है और उनके अंदर काम करने वाले सॉफ्टवेयर की कोडिंग अलग रहती है  जिस वजह से वो सॉफ्टवेयर दूसरे ऑपरेटिंग सिस्टम में काम नहीं कर सकता है जब तक उसका ऑपरेटिंग सिस्टम का कोड नहीं बदला जायगा , ठीक वैसे ही हर इंसान का बिलीफ सिस्टम अलग होता है और बहुत तरह का हो सकता है , हर घटना हर विचार का मतलब लोग अपने बिलीफ सिस्टम के अनुसार अपने अंदर लेते है, जिस तरह एक बॉस अगर 5 कर्मचारियों को एक ही वजह से डांट रहा है पर उन 5 कर्मचारियों पर उसका अलग अलग असर होगा किसी के मन में आएगा मेरा बॉस हमेसा मुझसे ही बोलता है, किसी के मन में आएगा मेरा बॉस  वजह से बाकी लोगो को डांट रहा है, किसी के मन में आएगा बॉस की गलती है और डांट मुझे पड़ रही है | घटना एक ही है बॉस एक ही है बॉस जो कह रहा है वो भी एक ही है लेकिन उसका प्रभाव अलग अलग पड़ रहा है, क्युकी हर इंसान का ऑपरेटिंग सिस्टम यानि बिलीफ सिस्टम अलग अलग है इसलिए | किसी को सबके सामने डांस करने में कोई प्रॉब्लम नहीं होती जबकि कोई किसी से अपनी बात कहने में भी हिचकिचाता है, अगर उन दोनों को एक ही तरह का मोटिवेशन दिया जाये तो उसका असर एक पे अच्छा पड़ेगा दूसरे पे कम असर होगा क्युकी दोनों को सॉफ्टवेयर एक ही दिया जा रहा है पर उसको ग्रहण करने वाला जो ऑपरेटिंग सिस्टम है वो अलग अलग है | अगर दूसरा व्यक्ति अपना ऑपरेटिंग सिस्टम यानि बिलीफ सिस्टम बदल दे और वैसा कर दे जैसा डांस करने वाले का है तो वह भी उसकी तरह ही डांस करने में हिचकिचाएगा नहीं | हमारे बिलीफ सिस्टम या उसकी कोई एक फाइल्स किसी तरह से ख़राब हुई पड़ी रहती है जब तक वो ठीक नहीं होगी तब तक आगे नहीं बढ़ा जा सकता है, वो फाइल्स खराब हमारे नेगेटिव विचार या दोस्तो या फॅमिली के विचार या किसी घटना से खराब हुई पड़ी रहती है | हम अपनी वो फाइल्स को ठीक करके उसके बारे में अंदर तक जा कर उसको बदल सकते है एक बार बदल जाने पर आप ठीक उसी व्यक्ति की तरह बिना हिचकिचाहट डांस आसानी से कर सकते है | चाहे आपको मंच पे स्पीच देने में प्रॉब्लम हो, चाहे तैरने में डर लगता हो चाहे शादी के नाम से डर लगता हो, ये सब खराब फाइल्स को आप ठीक कर सकते है और इन सबसे उबर कर ऊपर आ सकते है | हर वह चीज़ जो आप सोचते है की सामने वाला  कैसे कर रहा है वह सब हर चीज़ आपके लिए भी संभव है | अपने अंदर उठने वाले ख़राब फाइल्स के विचार को जानने की कोशिश कीजिये और समझिये की आखिर प्रॉब्लम कंहा से है , क्या किसी घटना का असर है या किसी के नेगेटिव विचार का असर या आपने अपनी सीमाएं खुद बना ली है | समस्या की जड़ तक जाकर आप उन सब तमाम ख़राब फाइल्स को बदल कर अपना ऑपरेटिंग सिस्टम बदल लीजिये जब आपका बिलीफ सिस्टम बदल जायगा तब आप के विचार आपको सपोर्ट करेंगे किसी भी तरह के नेगेटिव विचार से आपकी रक्षा करेंगे और निराशा में आपकी मदद करेंगे , आपको कामयाब आदमी का बिलीफ सिस्टम अपनाने की जरुरत है न की असफल व्यक्ति के बिलीफ सिस्टम की , आपके आस पास के लोग आपके ऑपरेटिंग सिस्टम में बिना मतलब की गैर जरुरी नेगेटिव फाइल्स भर के उनको वायरस से भरते रहते है ऐसे लोगो से दूर रहे है, क्युकी एक बार वो फाइल्स बहुत ज्यादा इकठी हो जाती है तो उनका वायरस दूर करने में उससे ज्यादा समय लग जाता है |  एक जैसे पंख वाले पक्षी एक साथ रहते है | सफल लोगो के बिलीफ सिस्टम एक जैसे रहते है और असफल लोगो के एक जैसे | ये आप पर निर्भर करता है आप किस तरह का अपनाते है | अगर बाज बनना है तो मुर्गियों के बीच रह कर नहीं बन सकते |

rejection motivation

आपने कभी सोचा है मिस्टर अमिताभ बच्चन, शाहरुख़ खान, जैक मा, अब्राहम लिंकन, स्टीव जॉब्स, थॉमस एडिसन, राइट ब्रदर्स
इन सबमे एक खाश बात वो ये की इन सबने और इनके जैसे अनेक लोगो ने लाइफ में ना जाने कितने धक्के कितने रिजेक्शन पाए है, या शायद जितने भी कामयाब लोग है उनके अंदर कही न कही रिजेक्शन है चाहे वो फॅमिली का हो दोस्तों का हो समाज का हो  लाइफ पार्टनर का हो , 80 प्रतिशत से ज्यादा लोग जो भी कामयाब हुए है कही न कही रिजेक्शन पाया है उन लोगो ने और उस रिजेक्शन को उन लोगो ने बदले की भावना में बदल लिया और उसका इस्तेमाल खुद की ग्रोथ या मै यह काम कर सकता हू की भावना में बदल कर उस एनर्जी का इस्तेमाल मोटिवेशन के रूप में किया और बिना थके निरंतर करते रहे |  किसी के द्वारा ये कहना की तुम ये काम कर सकते हो और किसी के द्वारा ये कहना की तुम ये काम नहीं कर सकते हो दोनों ही बाते मोटिवेशन की तरफ इशारा करती है लेकिन तुम यह काम नहीं कर सकते किसी को ऐसा कहने से वो इंसान उस भावना को बदले की भावना में बदलकर जल्द से जल्द आपसे बदला लेने की इच्छा में उस काम को करना शुरू कर देता है और यही उसके बिना रुके निरंतर उसको अपने काम  आगे बढ़ाय रखती है क्युकी दिमाग अच्छी चीज़ो के बजाय नेगेटिव चीज़ो पे जल्दी जयादा जल्दी आकर्षित होता है , जिस तरह प्यार में धोका खाये लोग बदला लेने की भावना में खुद को भी बर्बाद कर लेना चाहते है पर अपना बदला किसी भी कीमत पर लेना चाहते है, क्युकी बदले की भावना बहुत ज्यादा शक्तिशाली होती है , और बदले की भावना में इंसान कुछ भी कर गुरजरने को तैयार होता है , बदले की भावना अगर खुद की ग्रोथ में लगाईं जाए और सामने वाले से बदला भी ले लिया जाए वो सबसे अच्छा तरीका होता है बदला लेने का, रिजेक्शन की भावना से खुद को गिरा देना ठीक नहीं होता है, क्युकी ऊपर वाला सबसे मुश्किल काम सबसे अहम् इंसान को ही देता है अगर आप भी रिजेक्शन की भावना में कुछ कर गुज़ारना चाहते है तो उसको जूनून की आग बनाए और बदला लीजिये सामने वाले से लेकिन खुद को उससे ऊपर ले जाकर इतना ऊपर की उसको अपने किये पे शर्म आये, अपने दिमाग को अपने खिलाफ नहीं अपने समर्थन में इस्तेमाल कीजिये क्युकी इंसान का सबसे बड़ा दुसमन उसका दिमाग और सबसे बड़ा दोस्त भी उसका दिमाग है,

why ego is biggest enemy

हम सभी के अंदर जो सबसे कॉमन फीलिंग वह है ईगो।  सबके अंदर पाई जाती है किसी में कम किसी में ज्यादा।  हम सभी इंसान चाहते है हमारी एक पहचान हो ...