Tuesday, July 16, 2019

why ego is biggest enemy

हम सभी के अंदर जो सबसे कॉमन फीलिंग वह है ईगो।  सबके अंदर पाई जाती है किसी में कम किसी में ज्यादा।  हम सभी इंसान चाहते है हमारी एक पहचान हो समाज में हमारा मान हो।  इसी भावना के चलते हम खुद को कुछ बनाने के लिए रास्ते बनाने लगते है ताकि समाज में हमें ज्यादा मान सम्मान और पहचान मिल सके, और इसी भावना के चलते हमारे अंदर ईगो का जन्म हो जाता है ईगो शब्द का मतलब है सेल्फ इमेज।  हम अपनी सेल्फ इमेज के बारे में जैसा सोचते है हम चाहते है सामने वाला भी वैसा ही सोचे।  और जब कोई इंसान हमारी सेल्फ इमेज के खिलाफ कुछ बुरा बोलता है तो इससे हमारे सेल्फ इमेज यानि आत्म सम्मान को एक ठेस पहुँचती है और खुद की सेल्फ इमेज की सुरक्षा  हेतु हम अपने ईगो को विकसित कर लेते है जिससे की कोई भी हमारे सेल्फ इमेज या आत्म सम्मान को ठेस न पंहुचा सके। इसी ईगो के चलते हम अपना नेचर रक्षात्मक बना लेते है जब सामने वाला हमें गलत साबित करता है तो हम खुद को हर हाल में सही साबित करके रहते है और सामने वाले को गलत फिर चाहे उसके लिए बहस करना पड़े लड़ना पड़े रिश्ते तोडना पड़े। चूँकि ईगो का जन्म हमारे आत्म छवि की रक्षा करने हेतु होता है लेकिन इसका दूसरे पे बुरा प्रभाव पड़ता है क्युकी जो ईगो हमारे अंदर है वही ईगो सामने वाले के अंदर भी है।  जब हम खुद को सही साबित करके दूसरे को गलत साबित करना चाहते है तो सामने वाला इंसान भी यही चाहता है वो भी खुद को सही साबित करना चाहता है क्युकी उसके अंदर भी आप जैसे ईगो और आत्म छवि है।  यही वजह है की लोग खुद को साबित करने के लिए दोस्तों / रिस्तेदारो से लड़ाई तक कर लेते है।  जब हमें ऐसा लगता है की हमें गलत साबित कर दिया गया है तो हम इस बात को मन में बिठाकर सामने वाले से बदला लेने के फिराक में रहते है ताकि उसको गलत साबित कर सके या उसको सजा दे सके ताकि हमारा ईगो संतुष्ट हो सके।  चूँकि सामने वाले में भी यही फीलिंग रहती है इसलिए जब आप उसको गलत साबित कर देते है तो वो भी आपसे बदला लेने के लिए सही समय का इंतज़ार करता है। अगर एक कर्मचारी ने अपने बॉस से किसी बात पे बहस की और कर्मचारी ने खुद को सही साबित कर लिया तो उसका बॉस इस बात को याद रखेगा और खुद के ईगो को बचाने के लिए बदले की भावना को अपने अंदर भर लेगा। किसी दिन जब उस कर्मचारी को विशेष रूप से छुट्टी या किसी काम की जरुरत पड़ेगी तो बॉस के लिए यही सही समय रहेगा बदला लेने के लिए और ये बताने के लिए के उस दिन तुमने मुझसे बहस करके गलती की थी।  कर्मचारी और बॉस के बीच ये सिलसिला चलता रहेगा जिसका कोई अंत नहीं है।  ये सिलसिला दो दोस्तों के बीच या पति पत्नी के बीच या घरेलु मामलो में या रिस्तेदारो में देखा जा सकता है। ईगो होने का सबसे बड़ा दुष्परिणाम ये है की  हमें गलत साबित नहीं होने देता।  इंसान जितना आगे बढ़ता जाता है उतना सीखता जाता है अपनी गलतियों से और अगर वो खुद की गलती स्वीकार नहीं करेगा उसका बढ़ना वही पे रुक जायगा। ज्यादातर लोग अपनी गलती का दोष किस्मत, समाज, वस्तु, दोस्त, पार्टनर पे डाल देते है ऐसा करने के पीछे उनका ईगो होता है जो खुद को गलत साबित नहीं होने देता है ऐसा करने से वो खुद की गलती से सीख न लेने के कारण आगे भी वही गलती दोहराते है।  ईगो के प्रति आपको सेल्फ कॉन्सियस होना पड़ेगा आपको पता करना पड़ेगा की कब आप गलत है और कब सही। अगर आप गलत है तो आपको गलती स्वीकार करके उससे सीख लेकर आगे वो गलती नहीं दोहरानी चाहिए। और अगर रिस्तो में आप सही है और सामने वाला गलत तब भी आपको उसको गलत साबित न करके उसको समझाना चाहिए जो भी ग़लतफहमी हो उसको लेकर। क्युकी इंसान के अंदर विनम्रता अपने ईगो को कम करके ही आती है , इंसान जितना महान होता जाता है उसकी विनम्रता उतनी बढ़ती जाती है।  महान लोगो का ईगो भी उनको ले डूबता है और आम आदमी की विनम्रता उसको महान बना देती है।

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